Article: नीतीश-नड्डा संवाद। भारत की वर्तमान राजनीति पे दिनकर की रश्मिरथी काव्य से प्रेरित एक व्यंग्य
Before bringing him back into NDA’s fold, there were many failed attempts by BJP president J P Nadda to woo Nitish Kumar. A humorous political satire, this blog post is an adaptation of excerpts from Ramdhari Singh Dinkar’s Rashmirathi to depict a conversation that took place between Nadda and Nitish, where Nitish declines Nadda’s proposal and chooses to remain an ally of opposition.
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पा तुझे धन्य विपक्ष गठबंधन,
नीतीश तू एकमात्र उनका जीवन,
तेरे बल की है आस उन्हें,
तुझसे जय का विश्वास उन्हें।
लेकिन तू बन सूत अनादर सहता है,
ऐसे विपक्ष के दल में क्यों रहता है,
चल होकर संग अभी मेरे,
है केंद्र में प्रिय भ्राता तेरे,
बिछुड़े भाई मिल जायेंगे,
मिलकर सरकार बनाएंगे।
मस्तक पर मुकुट धरेंगे हम,
तेरा अभिषेक करेंगे हम,
आरती समोद उतारेंगे,
सब मिलकर पाँव पखारेंगे।
पद-त्राण गडकरी पहनायेंगे,
जयशंकर चंवर डुलायेंगे,
पहरे पर राजनाथ प्रवर होंगे,
सुशील-सम्राट अनुचर होंगे,
भोजन निर्मला बनायेगी,
स्मृति पान खिलायेगी।
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सुन-सुन कर नीतीश अधीर हुए,
क्षण एक तनिक गंभीर हुए,
फिर कहा- बड़ी यह माया है,
जो कुछ आपने बताया है,
हर बार सुनकर वही कथा,
मैं भोग चुका हूँ ग्लानि व्यथा।
इसलिए नड्डा जी आप चुप ही रहिये,
इस पर न अधिक कुछ भी कहिये।
मैं जाती गोत्र से दीन, हीन,
केंद्र के सम्मुख मलीन,
जब रोज अनादर पाता था,
कह “पलटू” पुकारा जाता था,
पत्थर की छाती फटी नही,
भाजपा तब भी तो कटी नहीं।
एनडीए जिस भय से भरी रही,
तज मुझे दूर हट खड़ी रही,
वह पाप अभी भी है मुझमें,
वह शाप अभी भी है मुझमें,
क्या हुआ की वह डर जायेगा?
आपको काट न खायेगा?
सहसा क्या हाल विचित्र हुआ,
मैं कैसे पुण्य-चरित्र हुआ,
भाजपा का क्या चाहता ह्रदय,
मेरा सुख या मोदी की जय?
यह अभिनन्दन नूतन क्या है?
नड्डा जी! यह परिवर्तन क्या है?
अपना विकास अवरुद्ध देख,
सारे बिहार को क्रुद्ध देख,
भीतर जब टूट चुका था मन,
आ गया लालूजी का समन।
निश्छल पवित्र अनुराग लिए,
मेरा समस्त सौभाग्य लिए।
है ऋणी नीतीश का रोम-रोम,
जानते सत्य यह सूर्य-सोम,
तन-मन-धन तेजस्वी का है,
यह जीवन तेजस्वी का है,
सुर पुर से भी मुख मोडूँगा,
नड्डा जी! मैं उसे न छोडूंगा।
अब जब विपत्ति आने को है,
घनघोर प्रलय छाने को है,
तज उसे भाग यदि जाऊंगा,
फिर से पलटू कहलाऊँगा।
मैं ही न सहूंगा विषम डंक,
मोदीजी पर भी होगा कलंक,
सब लोग कहेंगे डर कर ही,
मोदी ने अद्भुत नीति गही,
चल चाल नीतीश को तोड़ लिया,
सम्बन्ध फिर से देखो जोड़ लिया।
क्या नहीं आपने भी जाना?
मुझको न आज तक पहचाना?
जीवन का मूल्य समझता हूँ,
सत्ता को धूल समझता हूँ।
अब देर नही कीजै नड्डा जी,
कृपया फ़ोन रख दीजै नड्डा जी।
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1 comment
Excellent adaptation Umang. Well done.
Pranav
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